शिक्षक दिवस विशेष- मैं हूँ तुम्हारे साथ

ऑफ से ऑनलाइन की ओर



लेखिका -निवेदिता सक्सेना 


हाल ही में 15 अगस्त को जब विद्यालय मे झण्डा वन्दन हेतू स्कूल गयि तो,जाते ही कसक सी उठी ओर मन रूदन सा हो गया । ना ही विद्यार्थी ना ही उनके जोर शौर से बजते देश भक्ति गीत ना ही 15  अगस्त  वो जज्बा वो जुनून। ना ही राष्ट्रिय त्यौहार की  तैयारी मे दौढ़ते भागते बच्चे,ना ही एक दिन पहले से नृत्य मे भाग लेने वाले बच्चो मे आभूषण व ड्रेस की जुगाड करना।स्वाभविक सी बात हैं की" एक शिक्षक विद्यार्थी के कारण ही शिक्षक होता हैं "।बिना विद्यार्थी के शिक्षक होना सम्भव नही। वर्तमान मे सारी दूनियाँ जहा उलट-पलट गयी। वही शिक्षा- शिक्षण अचानक से परिवर्तित हो गया।


मुझे भी याद आ रहा जब मे लेक्चर के  समय हमेशा विद्यार्थियो से कहा करती थी वो समय दुर नही जब आप सबकी अगली पीढियाँ सिर्फ" डिजिटल स्टडी "करेगी ।क्युकी प्रकृति  के बीच मानव ने एक आर्टिफिशियल दिवार खडी की हैं। जिसमे मोबाइल,टॉवर हानिकारक तरंगें ओर बढते हमारी  आधुनिक जीन्दगी में    भौतिक सुख सुविधा के मद्देनजर नयी तकनीक के आधुनिक घरेलू उपकरण सब एक दिन हमे बहुत कुछ लौटाएंगे। वह भी सूद समेत उधार की तरह।विज्ञान भी यही कहता है हम अपनी" उर्जा को जीस तरह खर्च करेँगे उसक प्रतिफल उसी रुप मे कयी गुना हमे वापस भी मिलेगा फिर चाहे वह " पोसिटिव हो या नेगेटिव " । 


फिर जल्दी ही ये दिन आ जायेगा मे भी नही जानतीं थी।न हमारे विद्यार्थी जो आज अपने भविष्य की असमंजसता में "परिवार ओर शिक्षक" के मध्य की कढी बन कर "ऑन लाईन क्लास स्टडी " को समझने की कोशिशें कर रहे। वही शिक्षक भी नयी तकनिक से कुछ वाकिफ होने की कोशीशो  मे लगा।कही ऑफ़ लाईन लेक्चर के वीडियो बनाकर शॉर्ट टर्म मे अपने विषय को पुर्ण करना जो हम दस महिने मे पुर्ण करते अब सिर्फ उसकी एक रूपरेखा पुर्ण करना। हा फिलहाल जो स्थितियाँ हैं उसमे सभी विषय एक रुप हो गये।खासकर हायर सेकेंडरी लेवल पर कभी-कभी दुख भी होता की जीन पाठो को हम छाट कर रुचि पुर्ण तरिके से पढ़ाते हुये, हर बच्चे के मन को टटोलते हुये पढ़ाते थे। वह अब वॉल्यूम म्यूट कर  ओर कभी केमरा ऑफ़ कर स्टडी कर रहा या बस  मात्र ऑन लाइन उपस्थिति दे रहा।


वही पहले हम कयी तस्वीर व खबरो के माध्यम से देख चुके कयी शिक्षक कक्षा मे सो रहे या कयी अपने विषय को भी समझ नही पा रहे। ऐसी विकट स्थितियों मे उनका ध्यान भी अवश्य आ रहा की जब पूरानी शिक्षा निति ही मस्तिष्क के आवरण से विद्यार्थियो तक नही पहुच पा रहे थे तो ऐसे मे "नयी शिक्षा निति" को अंजाम देना , साथ ही पूर्णत: शिक्षक का भी डिजिटलीकरण होना । अपने आप मे एक बढि चुनौती बन कर उभरा एक प्रश्न है ।


फिर भी आखिर कब तक कैसे बचेंगे अब तो समय ही जवाब दे गया "ब्लैक बोर्ड " अब हाथ की मूठ्ठी  मे आ गया  । कुछ अचंभित करती  चुनौतिया ओर संस्कार लिये जहा शिक्षक के स्कूल मे प्रवेश करते ही नमस्ते या गुड मॉर्निंग का अभिवादन हूआ करता वही अब "हाय" भी व्हटसअप पर आ सकता। गलत वो भी नही किशोर मन के हाथो जबर्दस्ती मोबाइल को विकसित कर देना पढ रहा वह भी "एप डाउनलोड" करके। जहा हर नयी चीज को देखने की उत्सुकता व ललक रहती। पर हम केसे जाने इस डिजिटल दुनिया को जहा ऑन लाईन मे दुरिया भी हैं। ओर समय भी कम।


शिक्षा तन्त्र भी फिलहाल कोरोना संक्रमण के आगे बेबस क्युकी हर निर्णय एक नया दांव खेल रहा "स्कूल खुले तो संक्रमण" मे तेजी ना खुले तो विद्यार्थीयो की पढाई ठप्प।


बहरहाल,सत्य ये भी है की हर संकट काल सीखा कर ही जाता हैं । लेकिन जब बात आती हैं शिक्षक की तो हर नयी चुनौती का नाम ही " शिक्षक" है। जिसके पास हर वर्ष एक नया टास्क बच्चो के सफलतम परिणाम के रुप मे उसे मिलता हैं।


हाल ही फिर से एक फिल्म शायद पांचवी बार देख रही थी "चाक ऐण्ड डस्टर"  जो सरकारी तन्त्र के बाहर के शिक्षको की दास्ताँ बयाँ कर रही थी वही कयी गेर सरकारी संस्थाओ के सैकड़ों शिक्षको को कोरोना काल मे नौकरी से विरक्त हुए । वही एक दुख एक रूदन क्युकी यही वह संस्थाने होती हैं जहा एडमिशन के लिये पैरंट्स की भिढ लगी रह्ती हैं लेकिन वही तन ओर मन समर्पित व्यक्ति जो उन सैकडों विद्यार्थियो को व्यक्तित्व बनाने मे  लगे रहते हैं। वही अत्यधिक शारिरीक व मानसिक तनाव को एक ओर रख  दिन रात लगा रहता है।  वह आज भी "अन्तिम पेज के अन्तिम हाशिये" पर ही है। पैसे से ओर सम्मान से भी। बात ये भी नही की शिक्षा-शिक्षक ओर शिक्षण मे कोई कमी हो लेकिन फिर भी कयी मजबुरी शायद आरक्षण या फिर कुछ और।


वही बात करे ग्रामिण अंचल के विद्यार्थियो की तो ,हाल ही मे  कोरोना संक्रमण में पलायन कुछ ज्यादा खबर मे रहा  कारण भी है " भूख ओर डर " । जो कही ना कही रस्ता खोजेगा ही वही कयी ग्रामिण विद्यार्थी भी परिवार मजबुरी को समझते हुये वह भी मजदूरी करने ठेकेदारो के साथ चल दिए स्वाभविक हैं उनके लिये भी वर्तमान स्थितियो में पारिवरिक जिम्मेदारी। क्या रही उनके  दिल की वेदना ,क्या वह यही चाहते होंगे की हम भी भविष्य  मे  मजदूरी करे या पढाई छौड़ दे क्युकी हजारो हॉस्टल इस समय बंद हैं तब होस्टल के विद्यार्थी कहा जाकर केसे पढे। ऐसे मे जब बात हुई ऑन लाईन स्टडी की,तो बात करते हुये ओर उनकी मजबुरी समझते हुये दुख हूआ -की आखिर हम करे तो क्या करे परिवार का पेट पाले या एक स्मार्ट मोबाइल खरीदें । 


फिर बात करे इन गेर सरकारी शिक्षको की तो   फ़िलहाल, अमूमन हुये शिक्षा परिवर्तन की बयार को भी सबसे पहले इन्ही गेर सरकारी  शिक्षको ने तेजी से सीखा ओर त्वरित विद्यार्थियो से जुढ्कर उन्हे स्मार्ट बोर्ड से स्मार्ट स्टूडेंट बनाने की कसर नही छोढी। ये तो हुई वर्तमान मे गेर सरकारी शिक्षक की ओर विद्यार्थी के जमिनी स्तर पर किये संघर्षों की दास्ताँ जो कर रही अब भी इन्तेजार शायद कभी दिन अनुकूल होंगे ओर थोढी राहत मिलेगी। 


स्थितियाँ बहुत विकट है ओर विडंबना देश की जहा  जढो की मजबूती से ज्यादा ख्याली नन्हो के  फलो को कागजी तस्दीक देकर जढो मे रोग उत्पन्न कीया जा रहा ना की रोगमुक्त ।


" 2020 या 2021 "अब रुकेगा नही पहले विश्व मे एक या दो कोरोना संक्रमण था तब रोकथाम ओर सतर्कता ज्यादा थी अब संक्रमण भी आम बात की तरह कोई रेड ग्रीन या ऑरेंज जोन नही वरन अब सब रेड जोन की दहलिज पर आ गये ऐसे मे शिक्षक शिक्षण फिर एक नयी चुनौती दे रहा। 


 


"जिम्मेदारी हमारी"       


कुछ नए अनुशासन , नये नियम वह भी किशोरवय विद्यार्थियो के मनो भाव को समझते हुये विकसीत करने होंगे।


* जरुरत है आज इन्हे दुर रहते हुये भी अध्ययन मे व्यस्त रखते हुये इन्हे "सेफ जोन "देने की ।


* किशोरव्य को ऑन लाइन स्टडी के साथ कौशल विकास का मह्त्व जरुर समझायें।


* जरुरी हैं अध्ययन के साथ विद्यार्थियो को उनके परंपरागत व्यवसाय से जोढे रखने का मह्त्व भी बताना जिससे वह नौकरी को खोजने की आस की अपेक्षा दूसरो को रोजगार उप्लब्ध करवा सके।


* ऑन लाइन स्टडी संख्यात्मक नही गुणात्मक हो।


*हर विद्यार्थी आत्मनिर्भरता की और बढे नयी शिक्षा निति को समझे ओर विद्यार्थियो को आत्मविश्वास के साथ समझाए।


 


कहते हैं शिक्षक अपने आप मे एक नोबल प्रोफेशन से जुढा है नित नयी चुनौती को सफलतम दर्जा अपने विद्यार्थियो को दिलवाता ही है। जो कहता हैं हर दम अपने विद्यार्थियो को डरना नही,घबराना नही "मै साथ हु तुम्हारे"।