दीपक शर्मा, चैतन्य लोक
ज रूरत से ज्यादा शरीफ हो तुम! जिस सरकार ने तुम्हें कोरोना के नाम पर अनिश्चितकाल के लिए अपने ही घर में नजरबंद कर दिया... उसके कहने पर तुम ताली, थाली बजाते रहे, दिए जलाते रहे, वाह! नोटबंदी एवं जीएसटी जैसे सत्यानाशी उपायों से आपके कारोबार को चोपट कर देने के बाद भी वे आपसे निवेदन कर रहे हैं कि तुम्हारे उद्योग-धंधे भले ही बंद रहे, वर्करों को तुम सैलेरी बराबर देते रहना, गरीबों का ध्यान रखना... हद है तुम्हारी शराफत की... तुम से टीवी पर आकर तुम्हारी शराफत की परीक्षा लेने वालों से पूछो कि लॉकडाउन के दौरान वे आयकर विभाग वालों से 1.72 लाख लोगों को नोटिस देने वालों को फिलहाल मना नहीं कर सकते। यह प्रक्रिया तो लॉकडाउन खुलने के बाद भी हो सकती थी। आज भी उन्होंने हद की जब अखबार में खबर छपी कि विश्व बाजार में कच्चे तेल के भाव पाताल में जाने के बावजूद पेट्रोल-डीजल के भाव आसमान पर ही बने रहेंगे, क्योंकि सरकार इन पर 8 रुपए प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी में वृद्धि करने जा रही है। बेचारे देशवासी चिल्लाते रहे कि पेट्रोल-डीजल पर भी जीएसटी लागू करो पर क्या उन्होंने सुनी..? तुम तो तुरंत ताली बजाने भिड़ जाते हो। जब जीएसटी लागू होते समय तुमने बाजार बंद करके तथा अन्य प्रयासों से उसका विरोध किया था क्या तब तुम्हारी आवाज सुनी गई थी। देशव्यापी तालाबंदी के बाद घर में बैठा हर व्यक्ति आशंकित है कि इसके खुलने के बाद क्या होगा? कोरोना महामारी से भी ज्यादा लोग बेरोजगारी, भूखमरी और गरीबी से मारे जाएंगे। तुमको पूछना चाहिए कि विकसित देशों की तरह हमारे विकासशील देश को पूरी तरह ठप किया जाना ही एकमात्र विकल्प था या केवल प्रभावित इलाकों में आवागमन पर रोक लगाई जाकर अप्रभावित इलाकों को स्थानीय स्तर पर चालू रखा जा सकता था। अर्थात् अंतरराज्यीय, जिले एवं राज्य की सीमाओं को सील करके बीमारी पर रोक लगाई जाकर कामकाज शुरू रखा जा सकता था। जब सरकार अपने खजाने में सैंध नहीं लगने देना चाहती है तो मध्यमवर्गीय एवं गरीब लोगों की कमर क्यों वह पूरी तरह तोड़ देना चाहती है। बड़ी प्यारी स्टाइल से वे लॉकडाउन का समय बढ़ाए जा रहे हैं, पहले दिहाड़ी मजदूरों और किसानों के बारे में भी सोचो। वर्ग विशेष को शराफत छोड़कर कुछ सोचना पड़ेगा..? कोरोना से पहले सीएए को लेकर जो कुछ इस देश में हो चुका है उसको भूलना मत, सरकार के खजाने को तुम लबालब करते हो तो तुम्हें यह पूछने का अधिकार भी है कि उसमें से तुम्हारे ही सितमगरों पर कितना खर्च हो रहा है। शराफत छोड़ो... प्रश्न पूछो... विरोध करो... इससे पूर्व भी मैं लिख चुका हूं कि तुम किसी के भरोसे मत रहो, क्योंकि शाहीनबाग में न केवल सरकार, बल्कि सर्वोच्च न्याय व्यवस्था भी नाकाम दिखाई दी थी। तुम्हारा साथ देने वाला कौन है? सोचो और जागो।