नवपीढ़ी लाभार्थे प्रेरणास्पद जीवन दर्शन----------------------
डॉ तेजप्रकाश पूर्णानन्द व्यास
धन्वन्तरी स्वरूपाय
त्रिवेदी विजय शंकर :l
नमस्तुभ्यं महाभाग :
त्रिवेदी कुलदीपक :.ll
(भावार्थ :
डॉ विजय शंकर जी त्रिवेदी धनवन्तरी के साक्षात स्वरूप थे, ऐसे महामानव को मैं विनम्रता से प्रणाम करता हूं l वे त्रिवेदी परिवार के कुल दीपक थे )
विद्यावान तप: कीर्ति
ज्ञानदानी च शीलवान l
आयुर्वेद महाज्ञानी
विनयी अति धर्मवान ll
(भावार्थ :
वे विद्यावान तेजस्वी कीर्तिवान ज्ञानदानी एवम असीम शीलवान, आयुर्वेद के महाज्ञानी, विनयशील और धर्मात्मा प्रवृत्ति के महामानव थे l )
सुख दुख समेकृत्वा
असंभवम सम्भव: कुरु l
पुरुषार्थी सत्यवाचीश्च
परोपकाराय च पुण्यवान ll
(भावार्थ :
डॉ त्रिवेदी भगवद्गीतानुरूप सुख दुख में समवृत्ति जीवन शैली जीने वाले और जीवन में असम्भव को सम्भव में परिवर्तित करने की अदम्य क्षमता रखने वाले प्रेरक मानव थे l कर्मण्य मानव के
जीवन में सफलता चरण चूमती है l वे पुरुषार्थी एवम सत्यवाची थे l वे परोपकारी एवम पुण्यवान महामानव थे l)
मनासा वाचाश्च कर्मणा
लोकहितम कृत्वा सदा l
उदार चरितानाम हि
वसुधैव कुटुम्बकम ll
(भावार्थ :
आपने मन वचन एवम कर्म से निष्ठा एवम ईमानदारी से लोकहित - परोपकारी कर्म किये l उदार चरित्र के धनी डॉ त्रिवेदी इस वसुन्धरा गृह को एक वृहद कुटुम्बवत देखते थे - वे एक सकारात्मक दृष्टिकोण के वृहद कर्मवीर दूरद्रष्टा मानव थे l)
भाषा सविनया शुद्ध
दया करुणाश्च धैर्यवान l
सहज: सरल: सौम्य :
नागर समाजस्य गौरव: ll
(भावार्थ :
वे विनम्रतायुक्त शुद्ध भाषी थे l सहजता सरलता सौम्यता दया करुणा और धैर्यता जैसे उत्तम गुणों से युक्त वे नागर समाज के गौरव थे l )
मेधावी अभवत जन्मात
आयुर्वेदस्य प्राध्यापक : l
विक्रमस्य कुलपति आसीत्
आभामण्डल आकर्षक : ll
(भावार्थ :
दैवीय गुणों से युक्त उत्कृष्ट आभामण्डल मय देदीप्यमान व्यक्तित्व के धनी डॉ त्रिवेदी जन्म से मेधावी थे l उन्होंने अपने पुरुषार्थ के बल पर ही आयुर्वेद महाविद्यालय में प्राध्यापक, प्राचार्य पद को गौरवान्वित किया l आप विक्रम विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति भी रहे और एक शिक्षविद- प्रशासक के रूप में अपनी सेवायें दी l)
मां भारती यश: कीर्ति
सदैवहि अभिवृद्धवान l
महाकाल: महाभक्त :
हाटकेश्वरस्य शुभाशीष :ll
(भावार्थ :
भूत भावन भगवान् हाटकेश का अनन्त आशीर्वाद सदैव ही आपके साथ रहा - महाकालेश्वर के अनन्य भक्त डॉ त्रिवेदी ने मां भारत की यश कीर्ति की अभिवृद्धि अपने सुकृत कर्मों से की l)
ऋग्वेदानुरूप डॉ विजयशंकरस्य जीवनम आसीत् l यथा -
संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् |
देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते ||
भावार्थ
डॉ विजय शंकर जी त्रिवेदी की जीवन शैली ऋगवेदानुरूप थी -जैसे कि हम सब एक साथ चले, एक साथ बोले, हमारे मन एक हों |
प्रााचीन समय में देवताओं का ऐसा आचरण रहा इसी कारण वे वंदनीय हैँ |
स्थितप्रज्ञ: महाभाग :
संस्कृति संस्कारवान l
कीर्ति यस्य चिरस्थायी
तेजप्रकाश: प्रणमाम्यम ll
(भावार्थ
डॉ त्रिवेदी श्रीमद्भगवद्गीतानुसार स्थितप्रज्ञ थे l वे भारतीय संस्कृति के वाहक एवं संस्कारवान महामानव थे l उनकी असीम चिरस्थायी कीर्ति है l ऐसे महामानव को मैं डॉ तेजप्रकाश पूर्णानन्द व्यास विनम्र भाव से प्रणाम करता हूं l )
श्री विजय शंकर त्रिवेदी आयुर्वेद से जनमानस की सेवा के महारथी थे l
*समदोष: समाग्निश्च समधातुमलक्रिय : l
प्रसन्नात्मेन्द्रियमना: स्वस्थ इत्यभिधीयते ll*
मानव के दोष, धातु, मल तथा अग्निव्यापार सम हों अर्थात सामान्य (विकार रहित) हों तथा जिसकी इन्द्रियाँ, मन तथा आत्मा प्रसन्न हों, वही स्वस्थ है।
आजीवन लोकहित में स्वास्थ्य को सर्वोपरि जीवन में अंगीकार करने वाले नागरकुल दीपक
महाकालेश्वर की पवित्र उज्जयिनी निवासी सर्वश्री विजयशंकर जी त्रिवेदी एक स्थितप्रज्ञ महामानव का 25 जनवरी 2020 को पञ्चभूत शरीर को त्यागकर उनकी पवित्र आत्मा ईश्वरीय शक्ति में विलीन हो महाप्रयाण कर मोक्षगामी हो गई l भूत भावन शंकर - भगवान् हाटकेश के वे आजीवन अनन्य भक्त रहे. वे मानव रूप में साक्षात देव तुल्य थे l इंदौर उज्जैन देवास शाजापुर एवम वसुन्धरा गृह के सम्पूर्ण नागर वृन्द की ओर से पुनः डॉ त्रिवेदी जी को मैं डॉ तेजप्रकाश पूर्णानन्द व्यास श्रद्धावनत होकर श्रद्धासुमन - श्रद्धाञ्जलि आदरांजलि और पुष्पाञ्जलि अर्पित करता हूं lउनकी पवित्र आत्मा को ईश्वर शान्ति प्रदान करे l
*जायते हि धुवोर्मृत्युः* जन्म के साथ ही मृत्यु सुनिश्चित है l इन दो पड़ावों के मध्य ही मानव के किये गये परोपकार - लोक हित के कार्यों की अक्षुण्ण जमापूंजी ही सदैव मानव को अमरता प्रदान करती है l इस हेतु लोक हित में आजीवन अवदानी रहे डॉ त्रिवेदी जी जीवन्त उदाहरण हैं l
*पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः
स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः ।
नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः
परोपकाराय सतां विभूतयः ॥*
नदियाँ अपना जल स्वयं नहीं पीती, वृक्ष अपने फल खुद नहीं खाते, बादल (खुद ने उगाया हुआ) अनाज खुद नहीं खाते । सत्पुरुषों का जीवन परोपकार के लिए ही होता है । डॉ त्रिवेदी जी आजीवन आम्रफल से लदे वृक्ष सदृश सदैव ही आयुर्वेद चिकित्सा के लोकोपकारी देव तुल्य मानव रहे. यह नागर समाज के लिये गौरव का प्रसंग हैं l
आप भूतेश्वर के प्रसिद्द जागीरदार परिवार में स्वर्गीय गौरीशंकर जी त्रिवेदी एवं स्व लीलावती देवी त्रिवेदी के सबसे छोटे पुत्र थे l बाल्यकाल से ही आप कुशाग्र बुद्धि थे. आपने आयुर्वेद स्नातक अध्ययन ग्वालियर में और स्नातकोत्तर आयुर्वेद ( एम डी ) अध्ययन जामनगर (गुजरात )से किया l अल्पायु में ही आप लोक सेवा आयोग से चयनित होकर आयुर्वेद महाविद्यालय रायपुर में पदस्थ हुए l पदोन्नत होकर आप वहीं प्राध्यापक बनें l आपने पदोन्नत होकर उज्जैन के आयुर्वेद महाविद्यालय के प्राचार्य के गरिमामय पद पर कुशलता से प्रशासन किया l इसी अवधि में आपको विक्रम विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति के पद का दायित्व भी संभाला l आयुर्वेद के प्रादेशिक प्रशासकीय सर्वोत्कृष्ट पद आयुर्वेद होम्योपैथिक और यूनानी संचानलालय भोपाल के अत्यंत गरिमामय एवम जिम्मेदारियों से भरे संचालक (डायरेक्टर ) पद पर कुशलता से कार्य किया l आपने अपनी कार्यकुशलता और पुरुषार्थ से नागर समाज को आजीवन सम्मान और उत्कृष्टतम ऊंचाइयां प्रदान की हैं l वे एक कुशल आयुर्वेद के प्रकाण्डतम धन्वन्तरि के जीवन्त अग्रगण्य नि:शुल्क चिकित्सक के साथ ही उत्कृष्टतम मानवीय मूल्यों यथा दया करुणा प्रेम एवम खुशियों के जीते जागते बुद्ध थे l उनका आकर्षक आभामण्डल और चुम्बकीय आकर्षक व्यक्तित्व था, उनसे जो एक बार भी मिलता था , वह सदैव के लिये उनका चहेता हो जाता था l
आपका विवाह स्व नवनीत लाल जी व्यास एवं स्व कलावतीदेवी व्यास की पुत्री निर्मला जी से हुआ l स्व श्रीमति त्रिवेदी ने सदैव ही डॉ त्रिवेदी जी के प्रकल्पों व समाजसेवा के कार्यों को अग्रगण्यता से आगे बढाने में सहयोग प्रदान किया l
श्री त्रिवेदी अपने पीछे विद्वत परिवार में संजय त्रिवेदी, सौ रेणु त्रिवेदी, अजय त्रिवेदी, सौ भारती त्रिवेदी, साधना मिश्रा, शैलेन्द्र मिश्रा, ईशा त्रिवेदी, ईशान त्रिवेदी, शिवम त्रिवेदी, अक्षय मिश्रा और अर्पित मिश्रा छोड़ गये हैं l
दिवंगत आत्मा को
श्रद्धावनत नमन !
श्रद्धाञ्जलि !
पुष्पाञ्जलि !!
आदराञ्जलि !!!
महाकालेश्वर के अनन्य भक्त सर्व श्री डॉ विजय शंकर जी त्रिवेदी की अमर आत्मा को विनम्र नमन - जय हाटकेश l